Monday, December 30, 2019

नागरिकता क़ानून पर देशभर में हो रहे प्रदर्शन

देश की राजधानी दिल्ली में 16 दिसंबर 2012 को हुए निर्भया मामले के चारों दोषियों का केस अब लगभग पूरा होने वाला है. इन चारों पर गैंगरेप और हत्या का मामला दर्ज है. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अंतिम पुनर्विचार याचिका को ख़ारिज किया है.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस आर. भानुमति की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने इस याचिका को ख़ारिज करते हुए कहा, ''हम दोषी साबित हो चुके अक्षय कुमार की याचिका ख़ारिज करते हैं. उनकी याचिका पर दोबारा विचार करने जैसा कुछ नहीं है.'' इस पीठ में जस्टिस अशोक भूषण और ए.एस. बोपन्ना भी थे.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

अब इन चार दोषियों अक्षय, पवन गुप्ता, विनय शर्मा और मुकेश सिंह को एक महीने के भीतर अपनी-अपनी क्यूरेटिव याचिका दायर करनी होगी. चारों दोषियों के पास यह अंतिम क़ानूनी सहारा बचा है. इसके बाद उनके पास एक संवैधानिक सहारा बचेगा और वह है राष्ट्रपति के पास दया याचिका का.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

भारत में क़ानून के बड़े जानकार और वरिष्ठ अधिवक्ता मानते हैं कि इस मामले के चारों दोषियों को जल्दी ही फांसी हो जाएगी. इन चारों दोषियों की पुनर्विचार याचिका ख़ारिज हो चुकी है और अब क्यूरेटिव और दया याचिका ही दो अंतिम विकल्प बाकी बचे हैं.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

माना जा रहा है कि इन दोनों रास्तों पर भी दोषियों को कोई राहत नहीं मिलेगी क्योंकि इस घटना को बेहद जघन्य अपराध की श्रेणी में रखा गया है. निर्भया मामले ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

पूर्व सॉलिसिटर जनरल और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील मोहन परासरन कहते हैं, ''यह माना जा रहा है कि आने वाले तीन-चार महीनों में इन चारों दोषियों को फांसी हो जाएगी.''मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

परासरन ने बीबीसी से कहा, ''उन्हें जल्दी ही फांसी की सज़ा हो जाएगी. क्योंकि उनकी पुनर्विचार याचिका ख़ारिज हो चुकी है. मेरे ख़याल से इस पूरे मामले में हुई बर्बरता को देखते हुए उनकी क्यूरेटिव पिटीशन और दया याचिका पर भी ग़ौर नहीं किया जाएगा.''मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

वरिष्ठ वकील और पूर्व अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के.सी. कौशिक का भी मानना है कि आने वाले दो तीन महीनों में दोषियों को फांसी दे दी जाएगी.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

वो कहते हैं, ''मेरे विचार से क्यूरेटिव और दया याचिका दोनों ही ख़ारिज हो जाएंगी. यह मामला बेहद जघन्य अपराध की श्रेणी में है. इस मामले के दोषियों के पास जो भी क़ानूनी और संवैधानिक विकल्प हैं वो दो-तीन महीनों में समाप्त हो जाएंगे.''मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

कौशिक यह भी कहते हैं कि अब इस मामले में दो-तीन महीने से ज़्यादा वक़्त नहीं लगेगा.

बीबीसी के साथ बातचीत में वो कहते हैं, ''जैसे कि उनकी पुनर्विचार याचिका ख़ारिज हो चुकी है इसके बाद उनकी क्यूरेटिव और दया याचिका भी ख़ारिज हो सकती है तो ऐसे में सभी दोषियों को फांसी मिलने में ज़्यादा वक़्त नहीं लगेगा.''मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

आपराधिक मामलों के वकील विकास पाहवा कहते हैं कि इस मामले का जल्द से जल्द एक बेहतर और तर्कपूर्ण अंत होना चाहिए.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

वो कहते हैं, ''एक तयशुदा वक़्त यानी दो-तीन महीने में सभी क़ानूनी विकल्प पूरे हो जाएंगे और इसके बाद दोषियों को फांसी निश्चित हो जाएगी.''मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

तीन दोषी अक्षय, पवन और विनय के वकील ए.पी. सिंह का कहना है कि उनके तीनों मुवक्किल ग़रीब परिवारों से आते हैं इसलिए उन्हें कम सज़ा दी जानी चाहिए और उन्हें सुधरने का एक मौक़ा मिलना चाहिए.

बीबीसी के साथ बातचीत में उन्होंने कहा, ''मेरे सभी मुवक्किलों को सुधरने का एक मौक़ा मिलना चाहिए. वो ग़रीब हैं और उन्हें एक मौक़ा मिलना चाहिए कि वो भी देश के अच्छे नागरिक के तौर पर ख़ुद को साबित कर सकें.''मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

चारों अपराधी, मुकेश, अक्षय, पवन और विनय ने मार्च 2014 में दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था. दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश में इन सभी को मौत की सज़ा देने पर मंज़ूरी दी गई थी.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

इससे पहले 13 सितंबर 2013 को ट्रायल कोर्ट ने सभी दोषियों को मौत की सज़ा सुनाई थी.

इसके बाद 5 मई 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने भी दोषियों की सभी अपीलों को ख़ारिज कर दिया था. इसके बाद तीन दोषियों पवन, विनय और मुकेश ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की, जिसे 9 जुलाई 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने ख़ारिज कर दिया.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

उस समय जिस बेंच ने वह पुनर्विचार याचिका ख़ारिज की थी उसके अध्यक्ष जस्टिस दीपक मिश्रा थे. उन्होंने इस घटना को 'सदमे की सुनामी' बताया था.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

अपने लंबे चौड़े फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने अपराधियों के बर्ताव को जानवरों जैसा बताया था और कहा था कि ऐसा लगता है कि ये पूरा मामला ही किसी दूसरी दुनिया में घटित हुआ जहां मानवता के साथ बर्बरता की जाती है.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

16 दिसंबर 2012 की रात राजधानी दिल्ली में 23 साल की एक मेडिकल छात्रा के साथ छह पुरुषों ने एक चलती बस में गैंगरेप किया था.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

चार दोषियों के अलावा एक प्रमुख आरोपी राम सिंह ने ट्रायल के दौरान ही तिहाड़ जेल में आत्महत्या कर ली थी.

एक अन्य अपराधी जो घटना के वक़्त नाबालिग़ साबित हुआ था, उसे सुधारगृह भेजा गया था. साल 2015 में उसे सुधारगृह से रिहा कर दिया गया था. इस अपराधी का नाम ज़ाहिर नहीं किया जा सकता. इसे अगस्त 2013 में तीन साल सुधारगृह में बिताने की सज़ा सुनाई गई थी.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

अब यह अपराधी व्यस्क हो चुका है, लेकिन तय नियमों के अनुसार उन्होंने अपनी सज़ा पूरी कर ली है. अब वो एक चैरिटी संस्था के साथ है क्योंकि बाहर उन्हें सुरक्षा का ख़तरा बना हुआ है.

देश की राजधानी दिल्ली में 16 दिसंबर 2012 को हुए निर्भया मामले के चारों दोषियों का केस अब लगभग पूरा होने वाला है. इन चारों पर गैंगरेप और हत्या का मामला दर्ज है. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अंतिम पुनर्विचार याचिका को ख़ारिज किया है.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस आर. भानुमति की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने इस याचिका को ख़ारिज करते हुए कहा, ''हम दोषी साबित हो चुके अक्षय कुमार की याचिका ख़ारिज करते हैं. उनकी याचिका पर दोबारा विचार करने जैसा कुछ नहीं है.'' इस पीठ में जस्टिस अशोक भूषण और ए.एस. बोपन्ना भी थे.

अब इन चार दो अक्षय, पवन गुप्ता, विनय शर्मा और मुकेश सिंह को एक मषियों अक्षय, पवन गुप्ता, विनय शर्मा और मुकेश सिंह को एक महीने के भीतर अपनी-अपनी क्यूरेटिव याचिका दायर करनी होगी. चारों दोषियों के पास यह अंतिम क़ानूनी सहारा बचा है. इसके बाद उनके पास एक संवैधानिक सहारा बचेगा और वह है राष्ट्रपति के पास दया याचिका का.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

भारत में क़ानून के बड़े जानकार और वरिष्ठ अधिवक्ता मानते हैं कि इस मामले के चारों दोषियों को जल्दी ही फांसी हो जाएगी. इन चारों दोषियों की पुनर्विचार याचिका ख़ारिज हो चुकी है और अब क्यूरेटिव और दया याचिका ही दो अंतिम विकल्प बाकी बचे हैं.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

माना जा रहा है कि इन दोनों रास्तों पर भी दोषियों को कोई राहत नहीं मिलेगी क्योंकि इस घटना को बेहद जघन्य अपराध की श्रेणी में रखा गया है. निर्भया मामले ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था.

पूर्व सॉलिसिटर जनरल और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील मोहन परासरन कहते हैं, ''यह माना जा रहा है कि आने वाले तीन-चार महीनों में इन चारों दोषियों को फांसी हो जाएगी.''मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

परासरन ने बीबीसी से कहा, ''उन्हें जल्दी ही फांसी की सज़ा हो जाएगी. क्योंकि उनकी पुनर्विचार याचिका ख़ारिज हो चुकी है. मेरे ख़याल से इस पूरे मामले में हुई बर्बरता को देखते हुए उनकी क्यूरेटिव पिटीशन और दया याचिका पर भी ग़ौर नहीं किया जाएगा.''मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

वरिष्ठ वकील और पूर्व अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के.सी. कौशिक का भी मानना है कि आने वाले दो तीन महीनों में दोषियों को फांसी दे दी जाएगी.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

वो कहते हैं, ''मेरे विचार से क्यूरेटिव और दया याचिका दोनों ही ख़ारिज हो जाएंगी. यह मामला बेहद जघन्य अपराध की श्रेणी में है. इस मामले के दोषियों के पास जो भी क़ानूनी और संवैधानिक विकल्प हैं वो दो-तीन महीनों में समाप्त हो जाएंगे.''मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

कौशिक यह भी कहते हैं कि अब इस मामले में दो-तीन महीने से ज़्यादा वक़्त नहीं लगेगा.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

बीबीसी के साथ बातचीत में वो कहते हैं, ''जैसे कि उनकी पुनर्विचार याचिका ख़ारिज हो चुकी है इसके बाद उनकी क्यूरेटिव और दया याचिका भी ख़ारिज हो सकती है तो ऐसे में सभी दोषियों को फांसी मिलने में ज़्यादा वक़्त नहीं लगेगा.''मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

आपराधिक मामलों के वकील विकास पाहवा कहते हैं कि इस मामले का जल्द से जल्द एक बेहतर और तर्कपूर्ण अंत होना चाहिए.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

वो कहते हैं, ''एक तयशुदा वक़्त यानी दो-तीन महीने में सभी क़ानूनी विकल्प पूरे हो जाएंगे और इसके बाद दोषियों को फांसी निश्चित हो जाएगी.''मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

तीन दोषी अक्षय, पवन और विनय के वकील ए.पी. सिंह का कहना है कि उनके तीनों मुवक्किल ग़रीब परिवारों से आते हैं इसलिए उन्हें कम सज़ा दी जानी चाहिए और उन्हें सुधरने का एक मौक़ा मिलना चाहिए.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

बीबीसी के साथ बातचीत में उन्होंने कहा, ''मेरे सभी मुवक्किलों को सुधरने का एक मौक़ा मिलना चाहिए. वो ग़रीब हैं और उन्हें एक मौक़ा मिलना चाहिए कि वो भी देश के अच्छे नागरिक के तौर पर ख़ुद को साबित कर सकें.''मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

चारों अपराधी, मुकेश, अक्षय, पवन और विनय ने मार्च 2014 में दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था. दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश में इन सभी को मौत की सज़ा देने पर मंज़ूरी दी गई थी.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

इससे पहले 13 सितंबर 2013 को ट्रायल कोर्ट ने सभी दोषियों को मौत की सज़ा सुनाई थी.

इसके बाद 5 मई 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने भी दोषियों की सभी अपीलों को ख़ारिज कर दिया था. इसके बाद तीन दोषियों पवन, विनय और मुकेश ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की, जिसे 9 जुलाई 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने ख़ारिज कर दिया.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

उस समय जिस बेंच ने वह पुनर्विचार याचिका ख़ारिज की थी उसके अध्यक्ष जस्टिस दीपक मिश्रा थे. उन्होंने इस घटना को 'सदमे की सुनामी' बताया था.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

अपने लंबे चौड़े फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने अपराधियों के बर्ताव को जानवरों जैसा बताया था और कहा था कि ऐसा लगता है कि ये पूरा मामला ही किसी दूसरी दुनिया में घटित हुआ जहां मानवता के साथ बर्बरता की जाती है.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

16 दिसंबर 2012 की रात राजधानी दिल्ली में 23 साल की एक मेडिकल छात्रा के साथ छह पुरुषों ने एक चलती बस में गैंगरेप किया था.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

चार दोषियों के अलावा एक प्रमुख आरोपी राम सिंह ने ट्रायल के दौरान ही तिहाड़ जेल में आत्महत्या कर ली थी.

एक अन्य अपराधी जो घटना के वक़्त नाबालिग़ साबित हुआ था, उसे सुधारगृह भेजा गया था. साल 2015 में उसे सुधारगृह से रिहा कर दिया गया था. इस अपराधी का नाम ज़ाहिर नहीं किया जा सकता. इसे अगस्त 2013 में तीन साल सुधारगृह में बिताने की सज़ा सुनाई गई थी.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

अब यह अपराधी व्यस्क हो चुका है, लेकिन तय नियमों के अनुसार उन्होंने अपनी सज़ा पूरी कर ली है. अब वो एक चैरिटी संस्था के साथ है क्योंकि बाहर उन्हें सुरक्षा का ख़तरा बना हुआ है.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

देश की राजधानी दिल्ली में 16 दिसंबर 2012 को हुए निर्भया मामले के चारों दोषियों का केस अब लगभग पूरा होने वाला है. इन चारों पर गैंगरेप और हत्या का मामला दर्ज है. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अंतिम पुनर्विचार याचिका को ख़ारिज किया है.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस आर. भानुमति की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने इस याचिका को ख़ारिज करते हुए कहा, ''हम दोषी साबित हो चुके अक्षय कुमार की याचिका ख़ारिज करते हैं. उनकी याचिका पर दोबारा विचार करने जैसा कुछ नहीं है.'' इस पीठ में जस्टिस अशोक भूषण और ए.एस. बोपन्ना भी थे.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

अब इन चार दोषियों अक्षय, पवन गुप्ता, विनय शर्मा और मुकेश सिंह को एक महीने के भीतर अपनी-अपनी क्यूरेटिव याचिका दायर करनी होगी. चारों दोषियों के पास यह अंतिम क़ानूनी सहारा बचा है. इसके बाद उनके पास एक संवैधानिक सहारा बचेगा और वह है राष्ट्रपति के पास दया याचिका का.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

भारत में क़ानून के बड़े जानकार और वरिष्ठ अधिवक्ता मानते हैं कि इस मामले के चारों दोषियों को जल्दी ही फांसी हो जाएगी. इन चारों दोषियों की पुनर्विचार याचिका ख़ारिज हो चुकी है और अब क्यूरेटिव और दया याचिका ही दो अंतिम विकल्प बाकी बचे हैं.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

माना जा रहा है कि इन दोनों रास्तों पर भी दोषियों को कोई राहत नहीं मिलेगी क्योंकि इस घटना को बेहद जघन्य अपराध की श्रेणी में रखा गया है. निर्भया मामले ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था.

पूर्व सॉलिसिटर जनरल और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील मोहन परासरन कहते हैं, ''यह माना जा रहा है कि आने वाले तीन-चार महीनों में इन चारों दोषियों को फांसी हो जाएगी.''मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

परासरन ने बीबीसी से कहा, ''उन्हें जल्दी ही फांसी की सज़ा हो जाएगी. क्योंकि उनकी पुनर्विचार याचिका ख़ारिज हो चुकी है. मेरे ख़याल से इस पूरे मामले में हुई बर्बरता को देखते हुए उनकी क्यूरेटिव पिटीशन और दया याचिका पर भी ग़ौर नहीं किया जाएगा.''मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

वरिष्ठ वकील और पूर्व अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के.सी. कौशिक का भी मानना है कि आने वाले दो तीन महीनों में दोषियों को फांसी दे दी जाएगी.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

वो कहते हैं, ''मेरे विचार से क्यूरेटिव और दया याचिका दोनों ही ख़ारिज हो जाएंगी. यह मामला बेहद जघन्य अपराध की श्रेणी में है. इस मामले के दोषियों के पास जो भी क़ानूनी और संवैधानिक विकल्प हैं वो दो-तीन महीनों में समाप्त हो जाएंगे.''मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

कौशिक यह भी कहते हैं कि अब इस मामले में दो-तीन महीने से ज़्यादा वक़्त नहीं लगेगा.

बीबीसी के साथ बातचीत में वो कहते हैं, ''जैसे कि उनकी पुनर्विचार याचिका ख़ारिज हो चुकी है इसके बाद उनकी क्यूरेटिव और दया याचिका भी ख़ारिज हो सकती है तो ऐसे में सभी दोषियों को फांसी मिलने में ज़्यादा वक़्त नहीं लगेगा.''मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

आपराधिक मामलों के वकील विकास पाहवा कहते हैं कि इस मामले का जल्द से जल्द एक बेहतर और तर्कपूर्ण अंत होना चाहिए.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

वो कहते हैं, ''एक तयशुदा वक़्त यानी दो-तीन महीने में सभी क़ानूनी विकल्प पूरे हो जाएंगे और इसके बाद दोषियों को फांसी निश्चित हो जाएगी.''मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

तीन दोषी अक्षय, पवन और विनय के वकील ए.पी. सिंह का कहना है कि उनके तीनों मुवक्किल ग़रीब परिवारों से आते हैं इसलिए उन्हें कम सज़ा दी जानी चाहिए और उन्हें सुधरने का एक मौक़ा मिलना चाहिए.

बीबीसी के साथ बातचीत में उन्होंने कहा, ''मेरे सभी मुवक्किलों को सुधरने का एक मौक़ा मिलना चाहिए. वो ग़रीब हैं और उन्हें एक मौक़ा मिलना चाहिए कि वो भी देश के अच्छे नागरिक के तौर पर ख़ुद को साबित कर सकें.''मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

चारों अपराधी, मुकेश, अक्षय, पवन और विनय ने मार्च 2014 में दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था. दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश में इन सभी को मौत की सज़ा देने पर मंज़ूरी दी गई थी.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

इससे पहले 13 सितंबर 2013 को ट्रायल कोर्ट ने सभी दोषियों को मौत की सज़ा सुनाई थी.

इसके बाद 5 मई 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने भी दोषियों की सभी अपीलों को ख़ारिज कर दिया था. इसके बाद तीन दोषियों पवन, विनय और मुकेश ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की, जिसे 9 जुलाई 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने ख़ारिज कर दिया.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

उस समय जिस बेंच ने वह पुनर्विचार याचिका ख़ारिज की थी उसके अध्यक्ष जस्टिस दीपक मिश्रा थे. उन्होंने इस घटना को 'सदमे की सुनामी' बताया था.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

अपने लंबे चौड़े फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने अपराधियों के बर्ताव को जानवरों जैसा बताया था और कहा था कि ऐसा लगता है कि ये पूरा मामला ही किसी दूसरी दुनिया में घटित हुआ जहां मानवता के साथ बर्बरता की जाती है.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

16 दिसंबर 2012 की रात राजधानी दिल्ली में 23 साल की एक मेडिकल छात्रा के साथ छह पुरुषों ने एक चलती बस में गैंगरेप किया था.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

चार दोषियों के अलावा एक प्रमुख आरोपी राम सिंह ने ट्रायल के दौरान ही तिहाड़ जेल में आत्महत्या कर ली थी.

एक अन्य अपराधी जो घटना के वक़्त नाबालिग़ साबित हुआ था, उसे सुधारगृह भेजा गया था. साल 2015 में उसे सुधारगृह से रिहा कर दिया गया था. इस अपराधी का नाम ज़ाहिर नहीं किया जा सकता. इसे अगस्त 2013 में तीन साल सुधारगृह में बिताने की सज़ा सुनाई गई थी.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

अब यह अपराधी व्यस्क हो चुका है, लेकिन तय नियमों के अनुसार उन्होंने अपनी सज़ा पूरी कर ली है. अब वो एक चैरिटी संस्था के साथ है क्योंकि बाहर उन्हें सुरक्षा का ख़तरा बना हुआ है. मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

Friday, December 20, 2019

डोनल्ड ट्रंप पर महाभियोग से जुड़े हर सवाल का जवाब

अमरीकी संसद के निचले सदन हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेन्टेटिव ने राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के ख़िलाफ़ महाभियोग को मंज़ूरी दे दी है.

अब यह मामला अगले महीने ऊपरी सदन यानी सीनेट में जाएगा, जहां अगर इसके पक्ष में दो-तिहाई बहुमत पड़ते हैं तो ट्रंप को पद से हटाया जा सकेगा.

लेकिन ऊपरी सदन में रिपब्लिकन का बहुमत है, ऐसे में राष्ट्रपति को पद से हटाए जाने की संभावना कम ही दिख रही है.

डोनल्ड ट्रंप अमरीका के तीसरे ऐसे राष्ट्रपति हैं, जिनके ख़िलाफ़ महाभियोग लाया गया है.

अब सीनेट में क्या होगा, अगर महाभियोग सफल रहा तो क्या होगा, अगर सफल हो गया फिर भी क्या ट्रंप फिर से राष्ट्रपति बन सकते हैं?

स्पष्ट तौर पर अभी कुछ भी तय नहीं है. जनवरी के दूसरे सप्ताह में सीनेट का शीतकालीन अवकाश खत्म होगा.

आम सहमति यह है कि दूसरे सप्ताह की शुरुआत में ट्रंप के ख़िलाफ़ जांच शुरू हो सकती है. ऐसा अनुरोध ऊपरी सदन में डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता चक शूमर ने किया है.

सीनेट में रिपब्लिकन नेता मिच मैककोनल उनके इस अनुरोध को मान सकते हैं, हालांकि वो उनकी अन्य मांगों को ठुकरा भी सकते हैं.

अगर ट्रंप के ख़िलाफ़ महाभियोग सफल हो जाता है तो 2020 में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव पर क्या असर होगा?

इसका अगले साल होने वाले चुनावों पर क्या असर होगा, यह स्पष्ट नहीं है.

हालांकि रिपब्लिकन पार्टी का कहना है कि इससे उनको फ़ायदा मिलेगा और उनके कार्यकर्ता मुश्किल घड़ी में अपने नेता के साथ खड़े रहेंगे और ज़्यादा से ज़्यादा फंड इकट्ठा किया जा सकेगा.

वहीं डेमोक्रेटिक पार्टी का कहना है कि इसका रिपब्लिकन्स को खामियाजा भुगतना होगा क्योंकि यह राष्ट्रपति पद पर एक दाग़ की तरह होगा.

अगर ट्रंप को पद से हटा दिया जाता है और पेंस राष्ट्रपति बन जाते हैं तो क्या वो ट्रंप को उपराष्ट्रपति बना कर अपने पद से इस्तीफा दे सकते हैं? अमरीका का क़ानून क्या कहता है?

संविधान में ऐसा कुछ भी नहीं है जो इसके लिए मना करता हो, इसलिए यह निश्चित रूप से संभव है.

लेकिन परेशानी तब खड़ी हो सकती है जब माइक पेंस, डोनल्ड ट्रंप को उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनते हैं. इसके लिए संसद के दोनों सदनों की मंजूरी ज़रूरी है.

निचले सदन में डेमोक्रेटिक पार्टी का बहुमत है और यह कर पाना माइक पेंस के लिए मुश्किल होगा.

यह भी हो सकता है कि ऊपरी सदन यानी सीनेट महाभियोग के बाद डोनल्ड ट्रंप को भविष्य में किसी पद पर नियुक्त किए जाने पर रोक लगा दे. अगर ऐसा होता है तो सारे रास्ते बंद हो जाएंगे.

लेकिन अगर सीनेट इस तरह की रोक नहीं लगाती है तो माइक पेंस, ट्रंप को उपराष्ट्रपति बना सकते हैं.

सीनेट में रिपब्लिकन पार्टी को बहुमत प्राप्त है और यह तय है कि ट्रंप को राष्ट्रपति के पद से हटाया नहीं जा सकेगा, तो फिर ये सब क्यों किया गया?

इसके पीछे साफ़ तौर पर राजनीति है. डेमोक्रेटिक पार्टी राष्ट्रपति को जवाबदेह ठहराना चाहती थी और इसे उसकी सियासी मजबूरी कहा जा सकता है.

पार्टी यह साबित करना चाहती है कि राष्ट्रपति ने अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया है और अपने विरोधियों के ख़िलाफ़ जांच करवाने के लिए यूक्रेन के राष्ट्रपति पर दबाव डाला है. अगर वो ऐसा नहीं करती तो जाहिर तौर पर ट्रंप आगे की कार्रवाई करते और डेमोक्रेटिक को 2020 के चुनावों में इसका खामियाजा भुगतना पड़ता.

डेमोक्रेटिक पार्टी अगर चुप रह जाती तो यह कार्यकर्ताओं को हतोत्साहित करता और उनका मनोबल कम करता.

अगर ट्रंप पर महाभियोग चलता है लेकिन सीनेट उन्हें दोषी नहीं ठहराता है तो क्या वो अगला चुनाव लड़ सकेंगे? इसका उन्हें कुछ घाटा होगा?

डोनल्ड ट्रंप निश्चित तौर पर आगामी चुनाव लड़ सकते हैं. ऐसी संभावना है कि महाभियोग राष्ट्रपति को राजनीतिक रूप से नुकसान पहुंचा सकता है लेकिन सीनेट क़ानूनी रूप से उन्हें चुनाव लड़ने से नहीं रोक सकती है.

महाभियोग मामले में राष्ट्रपति के ख़िलाफ़ जांच की अगुवाई कौन करता है, देश के मुख्य न्यायाधीश या सांसदों की जूरी?

अमरीकी सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संवैधानिक रूप से सीनेट में जांच के लिए नामित पीठासीन अधिकारी होते हैं.

जांच की रूपरेखा के लिए पहले सीनेट में वोटिंग की जाएगी, इसके बाद चीफ़ जस्टिस जॉन रॉबर्ट्स हर दिन की कार्यवाही देखेंगे.

एक महत्वपूर्ण बात, अगर रिपब्लिकन पार्टी के 100 सांसद चाहेंगे तो वे कभी भी जांच के नियम को बदल सकते हैं.

अगर ट्रंप ने कानून तोड़ा है और निचले सदन ने महाभियोग की मंज़ूरी दे दी है लेकिन सीनेट ट्रंप को बचा लेता है तो यह न्याय कैसे हुआ?

शायद न्याय का इससे कोई लेना-देना नहीं है. जिन लोगों ने 1787 में संविधान लिखा था, उन्होंने सहमति से महाभियोग और हटाने की प्रक्रिया को राजनीतिक प्रक्रिया करार दिया था.

राजनेता ही यह प्रस्ताव ला सकते हैं और वे ही राष्ट्रपति को हटा सकते हैं.

अमरीकी लोकतांत्रिक व्यवस्था में कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका शामिल हैं. संविधान निर्माताओं ने यह तरीका सरकार की निरंकुशता पर लगाम लगाने के लिए निकाला था.

महाभियोग राष्ट्रपति को जवाबदेह बनाता है. लेकिन, यह बहस का विषय है कि यह न्याय सुनिश्चित करता है या नहीं.

क्या सीनेट में सांसद पार्टी लाइन पर ही वोट करते हैं या वो इसके लिए स्वतंत्र होते हैं?

प्रत्येक सीनेटर को अपने विवेक के आधार पर यह तय करना होता है कि उन्हें कैसे वोट देना चाहिए.

वो इसके लिए स्वतंत्र होते हैं. इस बार निचले सदन में डेमोक्रेटिक पार्टी के दो सदस्यों ने महाभियोग चलाने के ख़िलाफ़ वोट दिया.

Friday, December 13, 2019

फ्रांस के लोग बात-बात पर सड़कों पर क्यों उतर आते हैं?

फ्रांस में इन दिनों सरकार की ओर से प्रस्तावित पेंशन नीति में बदलाव के विरोध में प्रदर्शन हो रहे हैं. इन विरोध प्रदर्शनों ने इतना बड़ा रूप ले लिया कि पिछले हफ़्ते पूरे देश में यातायात ठप सा हो गया.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

लोग राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की यूनिवर्सल पॉइंट बेस्ड पेंशन प्रणाली का विरोध कर रहे हैं. मैक्रों की सरकार चाहती है कि देश में निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों के लिए चल रही अलग-अलग पेशन स्कीमों को हटाकर एक ही योजना बना दी जाए.

मगर अलग-अलग क्षेत्रों के लोगों को लगता है कि उनका पेशा अलग है और ज़रूरतें भी. ऐसे में सबके लिए एक ही पेंशन योजना बना देना ठीक नहीं है.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

ऐसे में शिक्षक, वकील, परिवहन कर्मचारी, पुलिसकर्मी, स्वास्थ्य कर्मी और अन्य क्षेत्रों के कामकाजी लोग सरकार की योजना के विरोध में उतर आए हैं.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

पिछले कुछ सालों में फ्रांस में हुई ये सबसे बड़ी हड़ताल थी. ज़्यादा दिन नहीं हुए हैं जब इसी देश में ईंधन की कीमतें बढ़ाए जाने के विरोध में येलो वेस्ट मूवमेंट हुआ था.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

फ्रांस में इस तरह के विरोध प्रदर्शनों का इतिहास रहा है. वैसे तो दुनिया भर में अलग-अलग मुद्दों और मांगों को लेकर प्रॉटेस्ट होते हैं मगर वे फ्रांस की तरह संगठित, व्यवस्थित और व्यापक नहीं होते.

समय-समय पर हुए कई आंदोलनों ने फ्रांस को समय-समय पर दिशा दी है. इस सदी की शुरुआत में फ्रांस में छात्रों के प्रदर्शन हुए हैं, ट्रेड यूनियनों में विभिन्न मुद्दों पर प्रदर्शन किए हैं और 2010 के आसपास भी पेंशन सुधारों को लेकर प्रदर्शन हुए थे.
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लैंगिक समानता और महिलाओं को उचित प्रतिनिधित्व देने के मुद्दों पर भी आंदोलन चले हैं. ऐसे प्रदर्शन और आंदोलन बेंचमार्क रहे हैं जिन्होंने फ्रांस की आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था को विस्तार दिया है.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

ख़ास बात है कि फ्रांस में हुए अधिकतर आंदोलन श्रमिक अधिकारों को लेकर हुए हैं. इनमें न्यूनतम आय, काम करने के माहौल, वहां पर सुविधाओं वगैरह के लिए हुए हैं.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

इन सभी प्रदर्शनों को जो बात ख़ास बनाती है, वह है इनका दायरा. जैसे कि अभी पेंशन को लेकर हो रहे प्रदर्शनों में सड़क यातायात से लेकर हवाई सेवा तक प्रभावित हुई. इस तरह के आंदोलनों के दौरान कई बार देश को चलाने वाले एनर्जी सेक्टर में काम करने वाले लोग भी कामबंदी कर देते हैं. नतीजा, पूरा देश थम जाता है.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

ये प्रदर्शन फ्रांस में मौजूद ट्रेड यूनियनों के प्रभाव और उनकी एकजुटता के कारण प्रभावी बनते हैं. ये यूनियनें भले ही अलग क्षेत्रों की हों, मगर एक-दूसरे के आंदोलनों को समर्थन देती हैं.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

फ्रांस में रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार रणवीर नायर कहते हैं ये यूनियनें यह ख़्याल भी रखती हैं कि किसी भी प्रदर्शन के दौरान पुलिस या सरकार प्रदर्शनकारियों का दमन न कर पाएं.

वह बताते हैं, "यूरोपीय संघ में फ्रांस ही शायद ऐसी अर्थव्यवस्था है जहां पर यूनियनें मज़बूत हैं जो बड़े प्रदर्शन या हड़तालें कर सकती हैं. जब किसी एक यूनियन की बात आती है तो उससे भले ही अन्य यूनियनें पूरी तरह सहमत न हों, फिर भी वे समर्थन जताती हैं. वे यह भी देखती हैं कि प्रदर्शनकारियों पर सरकार या पुलिस सीमित बल प्रयोग करे. जैसे कि गुरुवार को जब प्रदर्शनकारियों ने सख़्ती बरती, लाठीचार्ज किया तो उसके ख़िलाफ़ बड़ा प्रदर्शन हो गया. एक केस भी इसके विरुद्ध दायर हुआ है."

यानी विभिन्न संगठनों का आपसी सहयोग और तारतम्य किसी भी प्रदर्शन या आंदोलन को व्यापक बनाता है. सवाल उठता है कि आख़िर इस सहयोग और एकजुटता का कारण क्या है? जवाब है- फ्रांसीसी क्रांति.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

फ्रेंच रेवलूशन या फ्रांसीसी क्रांति पूरी दुनिया के इतिहास का एक अहम घटनाक्रम है. फ्रांस में आंदोलनों और प्रदर्शनों के दौरान दिखने वाली एकजुटता की जड़ें इसी तक जाती हैं.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

1789 में फ्रांसीसी क्रांति के दौरान हुए व्यापक प्रदर्शनों के कारण ही कारण नौवीं सदी से चली आ रही राजशाही का अंत हुआ था और पहली बार गणतंत्र की स्थापना हुई थी. दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के सेंटर फ़ॉर यूरोपियन स्टडीज़ में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर डॉक्टर शीतल शर्मा बताती हैं कि तभी से यहां सत्ता के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने की मज़बूत परंपरा शुरू हुई है.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

डॉक्टर शीतल कहती हैं, "फ्रांस के इतिहास को देखें तो वहां आठ-दस सदी पहले भी प्रदर्शन हुआ करते थे. मगर फिर हुआ फ्रेंच रेवलूशन जिसने पूरी दुनिया में लोकतंत्र और गवर्नेंस का सिस्टम ही बदल दिया."मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

फ्रांसीसी क्रांति की सबसे बड़ी देन है- Liberty, equality, fraternity यानी स्वतंत्रता, समानता और बन्धुत्व. यही फ्रांस का आधिकारिक ध्येय वाक्य भी है. डॉक्टर शीतल बताती हैं कि इसी से फ्ऱांस में ऐसी व्यवस्था उभरी जिसमें आम नागरिक को बहुत प्रतिनिधित्व मिला. इसमें यूनियनों यानी श्रमिक, कारोबारी और अन्य कामकाजी लोगों के संगठनों की अहम भूमिका रही है.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

डॉक्टर शीतल कहती हैं, "प्रदर्शन तो हर जगह होते हैं मगर फ़्रांस में होने वाले प्रदर्शन व्यवस्थित होते हैं. इसमें यूनियनों की भूमिका अहम है. विरोधाभासी बात यह है कि पूरी यूरोप की तुलना में फ़्रांस की यूनियनों में सबसे कम सदस्य मिलेंगे. फिर भी यहां ट्रेड यूनियमें स्ट्रॉन्ग हैं और वे हर सेक्टर का प्रतिनिधित्व करती हैं."मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

फ़्रांस में यूनियनों को मान्यता भी तभी मिलती है जब वे कुछ मूल्यों और मानमुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रहकों को पूरा करती हैं. उनका काम भी काफ़ी व्यवस्थित रहता है और वे गणतांत्रिक मूल्यों का समर्थन करती हैं. यही कारण है कि सदस्यों के मामले में वे भले ही छोटी हों मगर प्रतिनिधित्व पूरी मज़बूती से करती हैं.

फ्रांस का इतिहास सत्ता में बैठे शक्तिशाली वर्ग के ख़िलाफ़ आम लोगों के उठ खड़े होने के उदाहरणों से भरा हुआ है. इसमें 1871 का पैरिस कम्यून भी अहम है जब मज़दूर वर्ग ने पहली बार सत्ता संभाली थी. 1905 और 1917 की रूसी क्रांतियां भी इसी से प्रेरित मानी जाती हैं.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह
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इसके अलावा, फ्रांस में कम्यूनिस्ट-सोशलिस्ट पार्टियों का भी ख़ासा प्रभाव रहा है. यही कारण है कि यहां समाजवाद और पूंजीवाद का मिश्रण देखने को मिलता है.

1981 में फ्रांस में पहली बार सोशलिस्ट उम्मीदवार ने राष्ट्रपति चुनाव जीता और 1995 में हुए चुनावों तक समाजवादी ही राष्ट्रपति बनते रहे. इससे भी भी ट्रेड यूनियनिज़म मज़बूत हुआ है. इसी कारण यहां प्रदर्शनों की संस्कृति मज़बूत हुई और कोई भी सत्ता इन प्रदर्शनों को कुचल नहीं सकी.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार रणवीर नायर बताते हैं, "वैसे तो किसी भी सरकार को पसंद नहीं आता कि उसके ख़िलाफ़ प्रदर्शन हों. मगर फ्रांस में कई दशकों से प्रदर्शनों की संस्कृति रही है. 1950 के दशक में जनरल चार्ल्स डी गॉल के ख़िलाफ़ भी प्रदर्शन हुए थे. 1960 में कम्यूनिस्ट-सोशलिस्ट पार्टियों के समर्थन से आंदोलन हुए."मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

"सरकार इन प्रदर्शनकारियों का दमन नहीं कर सकती है क्योंकि लोगों के मन में हैं कि विरोध करना उनका जन्मसिद्ध अधिकार है और वे इस अधिकार को इस्तेमाल भी करते हैं. येलो वेस्ट मूवमेंट इसका उदाहरण है जो 10 महीनों तक चला और जिसमें लाखों लोगों ने हिस्सा लिया."मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह
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ऐसा नहीं है कि जनता प्रदर्शन करने वालों के सारे विषयों से सहमत होती है मगर जनता किसी के भी प्रदर्शन करने के अधिकार का बचाव करती है. इसी कारण किसी आवाज़ फ़्रांस मे अनसुनी नहीं रहती.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

इसका श्रेय भी फ़्रांसीसी क्रांति को जाता है जिसके कई सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिणाम रहे थे. दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के सेंटर फ़ॉर यूरोपियन स्टडीज़ में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर डॉक्टर शीतल शर्मा बताती हैं, "फ्रेंच रेवलूशन के समय का दौर ऐसा था जब अमरीका की स्वतंत्रता की लड़ाई को पैसा देते समय फ़्रांस पर काफ़ी कर्ज़ आ गया था. संपन्न लोग टैक्स नहीं देते थे और पूरा बोझ आम जनता पर पड़ता था. लूई 16वें यहां के शासक थे. वह आम जनता से कटे हुए थे और ख़ुद ऐशो-आराम से रहते थे."मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

"इससे त्रस्त फ़्रांस में जो क्रांति हुई, उसके कई नतीजे निकले. इनमें वोट देने का अधिकार शामिल था. नए संविधान में आम लोगों के प्रतिनिधित्व की बात हुई, धर्म को राजनीति से अलग कर दिया गया. इससे आम आदमी की पहचान बनी, उसे प्रतिनिधित्व मिला. ऐसा नहीं था कि आप संपन्न हैं तभी आपका महत्व होगा. आम आदमी, उसके श्रम को पहचान मिली."मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

"इसी तरह की विचारधारा को समाजवाद, साम्यवाद से बल मिला. इससे श्रमिक वर्ग सशक्त हुआ. वह इस लायक बना कि अपने अधिकारों को पहचान सके और सरकार, संगठन आदि के माध्यम से अपनी बातों और ज़रूरतों को आगे रख सके."मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रहमुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

अपने अधिकारों के लिए उठ खड़े होने और अपनी मांगों को लेकर लोकतांत्रिक तरीके से संघर्ष करना का तरीक़ा पूरी दुनिया सिखाने वाले फ्रांस के अंदर अब उग्र और हिंसक प्रदर्शनों का चलन भी बढ़ा है.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

इसका ताज़ा उदाहरण येलो वेस्ट मूवमेट था, जिसमें हिस्सा लेने वाले प्रदर्शनकारियों ने पैरिस और अन्य शहरों के स्मारकों और पर्यटन स्थलों में तोड़फोड़ की थी. वरिष्ठ पत्रकार रणवीर नायर बताते हैं कि यह चलन हाल के कुछ समय में देखने को मिला है.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

फ़्रांस में रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार रणवीर नायर कहते हैं, "अमूमन फ़्रांसीसी प्रदर्शनों और आंदोलनों में मेलों जैसा माहौल देखने को मिलता था जिसमें शामिल होने वाले लोग नारे लगाकर या गाते हुए अपनी बात कहते थे. मगर हिंसा की घटनाएं अब बढ़ने लगी हैं."मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

"पहले भी प्रदर्शन होते थे मगर इतने हिंसक नहीं होते थे. चार-पांच सालों से ये उग्र हुए हैं. जैसे कि येलो वेस्ट के प्रदर्शनकारियों ने सार्वजनिक संपत्ति को काफ़ी नुक़सान पहुंचाया था. दुकानों, बैंकों आदि को तोड़ा और लूटा गया था. इसमें ब्लैक मास्क नाम से पहचाने वाले कुछ लोग हैं जो अति वामपंथी हैं जिन्हें कुछ लोग अराजकतावादी भी कहते हैं. ये कुछ चुनिंदा लोग हैं जो पूरे प्रॉटेस्ट को हाइजैक करके हिंसक रंग दे देते हैं."मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

बावजूद इसके, फ़्रांस में प्रदर्शनों की संस्कृति की स्वीकार्यता बनी हुई है. वर्तमान राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ख़ुद भी 2017 में 'द रिपब्लिक ऑन द मूव' नाम के राजनीतिक आंदोलन के दम पर सत्ता में आए हैं.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

फ्रांस में जागरूकता का स्तर ऐसा है कि कोई भी शख़्स राजनीतिक और आर्थिक मामलों से ख़ुद को अछूता नहीं पाता. हर मामले में वह भागीदारी और प्रतिनिधित्व चाहता है.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्र

और जब कभी आम फ्रांसीसी नागरिक को लगता है कि उसे फैसले लेने की प्रक्रिया से दूर रखा गया या सरकार का कोई क़दम उसके जीवन को प्रभावित कर सकता है, तब-तब वह सड़कों पर उतरा, प्रदर्शन किए हैं, आंदोलन चलाए और क्रांतियां हुईं.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

इन्हीं प्रदर्शनों, आंदोलनों और क्रांतियों ने बाक़ी दुनिया के प्रदर्शनों, आंदोलनों और क्रांतियों को भी प्रेरणा दी है.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

Thursday, December 5, 2019

कश्मीर पर पाकिस्तानी संसद में घिरे क़ुरैशी, कूटनीतिक इमरजेंसी लगाने की सलाह

पाकिस्तान की संसद में कश्मीर मुद्दे पर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच कश्मीर मुद्दे को लेकर बुधवार को जमकर तक़रार हुई.

बुधवार को मौजूदा सत्र के पहले ही दिन विपक्ष ने सरकार पर कश्मीर संकट को ठीक से सामने ना रखने के लिए सरकार पर नाकामी का आरोप लगाया.

एक विपक्षी सांसद ने सरकार को कूटनीतिक आपातकाल घोषित करने और इस्लामिक देशों के संगठन ओआईसी से हाथ खींचने की सलाह दे डाली.

पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी ने सफ़ाई देते हुए विपक्ष से अनुरोध किया कि वो कश्मीर मामले पर सरकार के प्रयासों को कमज़ोर ना करे.

क़ुरैशी ने कहा, "जब पाकिस्तान की कोशिशें कमज़ोर होती हैं, तो आप कमज़ोर होते हैं, पाकिस्तान का पक्ष कमज़ोर होता है. आप अपने सुझाव दीजिए और हमने जो कोशिशें की हैं उसे और मज़बूत कीजिए. हमारे हाथों को कमज़ोर मत कीजिए, उसे और ताक़त दीजिए."

ग़ौरतलब है कि कश्मीर से अनुच्छेद 370 को वापस लिए जाने के फ़ैसले के बाद से ही पाकिस्तान में इमरान ख़ान को आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है.

इमरान सरकार ने इस बारे में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समर्थन हासिल करने के लिए अमरीका, चीन, ईरान, सऊदी अरब समेत कई देशों के दौरे किए मगर किसी भी देश ने खुलकर भारत के फ़ैसले की आलोचना नहीं की.

पाकिस्तान ने चीन की मदद से इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में भी उठाया. पाकिस्तानी विदेश मंत्री ने 31 अक्तूबर को भी सुरक्षा परिषद और संयुक्त राष्ट्र महासचिव को भारत-प्रशासित कश्मीर की स्थिति को लेकर चिट्ठी लिखी है.

पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय की ओर से जारी की गई चिट्ठी में लिखा गया है कि पाकिस्तानी विदेश मंत्री की ओर से संयुक्त राष्ट्र को भेजी गई ये ऐसी छठी चिट्ठी है.

इससे पहले पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री राजा परवेज़ अशरफ़ ने इमरान सरकार पर प्रहार करते हुए सरकार की कोशिशों को नाकाफ़ी बताया.

परवेज़ अशरफ़ ने कहा, "हुकूमत ने यक़ीनन कोशिशें की होंगी, मगर मुझे अफ़सोस के साथ कहना पड़ता है कि आज इतने दिन गुज़र गए और हम कर्फ़्यू तक नहीं उठा सके. हम अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ मिलकर भारत को इतना भी मजबूर नहीं कर सके कि वो कश्मीर के लोगों को कम-से-कम घर से बाहर निकलने की इजाज़त दे सके. यहाँ तक कि वो मस्जिद भी नहीं जा पा रहे हैं जैसी कि रिपोर्ट आ रही हैं."

वहीं मुत्तहिदा-मजलिसे-अमल के सांसद मुनीर ओरकज़ई ने क़ुरैशी के दावे को चुनौती देते हुए कहा कि इमरान सरकार के दौरान जो हुआ वो कोई सोच भी नहीं सकता था.

मुनीर ओरकज़ई ने कहा," कश्मीर के साथ 72 सालों में पहले कभी ऐसा नहीं हुआ, आप पहले भी कई बार मंत्री रह चुके हैं, यहाँ बैठे 20-25 मंत्री पहले भी हुकूमतों के फ़ैसलों में शामिल रहे हैं. नए मंत्री तो यहाँ बैठे चंद पश्तून भाई हैं जिन्हें यहाँ सिर्फ़ गालियाँ देने के लिए बिठाया है कि बस गालियाँ निकालो."

पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की पूर्व विदेश मंत्री हिना रब्बानी ख़ार ने कहा कि सरकार को कम-से-कम ओआईसी के विदेश मंत्रियों की बैठक बुलानी चाहिए.

मगर पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) के नेता अहसन इक़बाल ने ओआईसी की ठंडी प्रतिक्रिया की आलोचना की और कहा कि अगर ओआईसी बैठक नहीं बुलाती है तो पाकिस्तान को तत्काल इस गुट से अलग हो जाना चाहिए. उन्होंने कहा, "हमें ऐसा मरा हुआ मंच नहीं चाहिए जो कश्मीर पर एक बैठक ना बुला सके."

अहसन इक़बाल ने साथ ही कहा कि जिस तरह से विदेश मंत्री और प्रधानमंत्री ने इतने विदेशों के दौरे किए, राजदूतों को भेजा, उसे देखते हुए हुकूमत को अब तक कूटनीतिक इमरजेंसी का एलान कर देना चाहिए था.

उन्होंने कहा,"मैं अभी तक नहीं समझ नहीं पा रहा हूँ कि दुनिया का इकलौता परमाणु शक्ति संपन्न मुस्लिम मुल्क इतना बेबस क्यों हो गया है".

Monday, November 25, 2019

新疆再教育营:文件披露维吾尔人如何被“洗脑”

最近披露的一批文件显示,中国当局如何在新疆设立再教育营系统,对上百万维吾尔人进行“洗脑”。

中国政府一直称,这些机构提供职业教育和训练。但BBC《广角镜》节目看到的官方文件披露了这些营地的囚犯如何被关押、灌输思想和惩罚。

中国驻英国大使将这些文件斥为假消息。

国际调查记者同盟(International Consortium of Investigative Journalists)披露了这些文件,该机构与包括英国BBC《广角镜》节目及《卫报》等17家媒体合作。

近三年来,中国政府在新疆设立拘押营,称是为打击极端主义及对当地人进行再教育,但调查发现的新证据驳斥了北京的说法。

据悉大约有100万人未经审判就被拘押,其中大多数都是维吾尔族穆斯林。

国际调查记者同盟将泄露的中国政府文件称为“中国电文”(China Cables),其中包括一份2017年时任新疆维吾尔自治区党委副书记朱海仑向再教育营管理人员发布的九页文件,当时朱海仑是当地最高级别安全官员。

文件披露被拘押人士是如何被监控的:“对学员实行就寝床位固定、队列位置固定、教室座位固定、技能操作岗位固定,严禁擅自调换。”

“强化学员一日生活行为规范,落实起床、点名、洗漱、如厕、整理内务、就餐、学习、就寝、封门等行为规范和纪律要求。”

其他文件也验证了拘留营规模之大。其中一份披露,2017年中仅一周就有1.5万人被送往再教育营。

“人权观察”中国部主任索菲・理查森(Sophie Richardson)称检方应使用泄露的文件。

“这是一份可用于起诉的证据,记录了严重侵犯人权的行为,”她说,“我认为可以将每个被拘留者描述为至少遭受了心理折磨,因为他们真的不知道会在那里呆多久。”

文件还显示,当被拘押人的行为、信仰和语言已经转化时,他们才可以被释放。

“促进学员悔过自新和检举揭发,深刻认识以往行为的违法性、犯罪性、危险性。”文件称,“对认识模糊、态度消极甚至有抵触情绪的,实行教管干部‘多包一’等方式,开展教育转化攻坚,确保达到效果。”

Thursday, November 21, 2019

बीपीसीएल समेत पांच कंपनियों में हिस्सेदारी बेचेगी सरकार

एनडीए सरकार ने भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल) समेत पांच सरकारी कंपनियों के विनिवेश को मंज़ूरी दे दी है.

बुधवार रात को एक संवाददाता सम्मेलन में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने केंद्र सरकार के इन बड़े फैसलों की जानकारी दी है.

वित्त मंत्री ने बताया कि भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल) के साथ कंटेनर कॉरपोरेशन (कॉनकॉर), टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कारपोरेशन इंडिया लिमिटेड (टीएचडीसीएल), नार्थ ईस्टर्न इलेक्ट्रिक पॉवर कारपोरेशन लिमिटेड (नीपको) और शिपिंग कॉरपरेशन (एससीआई) के विनिवेश को भी मंज़ूरी मिलीहै.

1. केंद्र सरकार दो बड़ी कंपनियां, बीपीसीएल की 53.4 % और शिपिंग कॉरपरेशन की 63.5% हिस्सेदारी को बेचेगी. बीपीसीएल में केंद्र की हिस्सेदारी 53.29 फीसदी है.

2. विनिवेश प्रक्रिया में नुमालीगढ़ रिफाइनरी में बीपीसीएल की 61 फीसदी हिस्सेदारी शामिल नहीं है. मंत्रिमंडल ने नुमालीगढ़ रिफाइनरी की हिस्सेदारी को छोड़कर बीपीसीएल में प्रबंधन नियंत्रण सौंपने के साथ रणनीतिक विनिवेश को मंज़ूरी दी है.

3. कैबिनेट से शेयर हिस्सेदारी को 51 फीसदी से नीचे लाने को मंज़ूरी मिली है. यानि बीपीसीएल के अलावा चार अन्य सरकारी कंपनियों में भी सरकार द्वारा अपने निवेश बेचने के बाद सरकार की हिस्सेदारी 51 फीसदी से नीचे रह जाएगी.

4. बीपीसीएल के अलावा शिपिंग कॉरपरेशन यानि भारतीय जहाजरानी निगम के रणनीतिक विनिवेश को भी मंज़ूरी दी गई है. शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया में सरकार की 63.75 प्रतिशत की बिक्री और कंटेनर कॉरपोरेशन में 30.9 प्रतिशत हिस्सेदारी के विनिवेश की भी मंज़ूरी मिली.

5. मंत्रिमंडल ने कॉनकॉर, टीएचडीसीआईएल में भी प्रबंधन नियंत्रण सौंपने के साथ रणनीतिक विनिवेश को मंज़ूरी दी है. सरकार के पास फिलहाल कॉनकोर में 54.80 फीसदी हिस्सेदारी है.

6. नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन (एनटीपीसी) टीएचडीसीआईएल में केन्द्र सरकार की हिस्सेदारी खरीदेगी. इसके अलावा यह कंपनी नॉर्थ ईस्टर्न इलेक्ट्रिक पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (नीपको) में भी सरकार की हिस्सेदारी खरीदेगी.

7. मंत्रिमंडल ने प्रबंधन नियंत्रण को जारी रखते हुए इंडियन ऑयल जैसे चुनिंदा सार्वजनिक उपक्रमों में सरकार की हिस्सेदारी को 51 प्रतिशत से कम करने को मंजूरी दी है.

सरकार ने वित्त वर्ष 2019-20 में विनिवेश की मदद से 1.05 लाख करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा है. अब तक करीब 17365 करोड़ रुपये जुटाए जा चुके हैं.

समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार भारत पेट्रोलियम (बीपीसीएल) के प्रस्तावित विनिवेश की खबरों की पृष्ठभूमि में कांग्रेस के एक सदस्य ने लोकसभा में बुधवार को इस तरह के फैसले को देशहित के लिए नुकसानदेह बताते हुए सरकार से इस पर पुनर्विचार की मांग की.

कांग्रेस के हीबी इडन ने नियम 377 के तहत इस विषय को उठाते हुए कहा कि खबरों के अनुसार बीपीसीएल के विनिवेश का सैद्धांतिक फैसला लिया गया है जो देशहित के लिए नुकसान वाला है.

Tuesday, October 22, 2019

نفوذ تركيا في المنطقة: قوة للبناء أم للهدم؟

لابد وأن يداعبك طيف التاريخ عندما تقف على ضفاف البوسفور، وتتطلع إلى الشطرين، الأوروبي والآسيوي، من اسطنبول. فهذه المدينة الفريدة في موقعها، حيث تتعانق عندها آسيا وأوروبا، كانت عاصمة الدولة العثمانية ومركز نفوذها لسنوات طويلة. وامتد هذا النفوذ لمجموعة من الدول العربية التي كانت تابعة بدرجات مختلفة لسلاطين الدولة العثمانية. وبلغت هذه الدولة أوج قوتها في عهد السلطان سليمان القانوني، إذ سيطرت على أجزاء كبيرة من وسط آسيا وشرق أوروبا، وكانت إحدى القوى الأوروبية الكبيرة وقتها.

ثم دخلت الدولة العثمانية تدريجيا في مرحلة الأفول والتراجع حتى تحولت لرجل أوروبا المريض، كما كان يطلق عليها، في نهايات القرن التاسع عشر. وانتهى بها المطاف إلى الهزيمة في الحرب العالمية الأولى، الامر الذي عجل بأن يعلن مصطفى كمال أتاتورك قيام الجمهورية التركية في عام 1923، وإلغاء الخلافة الإسلامية عام 1924.

سعى أتاتورك إلى توجيه دفة تركيا إلى الغرب، والابتعاد عن روابطها التقليدية مع العالم الإسلامي، وهو ذات التوجه الذي استمر عليه من خلفه في حكم تركيا لسنوات طويلة. كما تعززت روابط تركيا مع الولايات المتحدة خلال فترة الحرب الباردة، وذلك لأن واشنطن كانت في حاجة إلى موقع تركيا الاستراتيجي في ظل صراعها مع الاتحاد السوفيتي السابق، الأمر الذي مكن تركيا من الحصول على عضوية حلف شمال الأطلنطي (الناتو) لتصبح الدولة الوحيدة ذات الأغلبية المسلمة في هذا الحلف.

غير أن دور تركيا في العالم العربي والإسلامي عاد للظهور بقوة مع وصول حزب العدالة والتنمية للحكم في عام 2002، إذ تبنى قادة ومفكرو الحزب منهجا يقوم على ضرورة إحياء دور تركيا الإسلامي الذي تعرض للتجاهل والإهمال منذ عهد أتاتورك. كما أن النمو الاقتصادي الكبير الذي تمكن الحزب من تحقيقه في تركيا في الفترة من 2002 إلى 2017، إذ ارتفع الناتج المحلي الإجمالي لثلاثة أمثال ما كان عليه قبل وصول الحزب للحكم، ساهم أيضا في تطلع تركيا إلى علاقات اقتصادية وسياسية أوسع في المنطقة العربية.

ويوضح الدكتور محمد الثنيان، رئيس مركز "طروس" للدراسات الشرق أوسطية في الكويت، والمتخصص في العلاقات العربية التركية، أن حزب العدالة والتنمية تحرك بدافع التاريخ والجغرافيا والموروث الثقافي لاستعادة دور تركيا في العالم العربي والإسلامي. إذ يسعى قادة الحزب، كما يقول الثنيان، إلى أحياء فكرة الاستقلال عن الغرب، سواء لتركيا أو نشرها في باقي دول الإقليم، خاصة الاستقلال عن القرار الأمريكي. كما يسعى الحزب لإحياء فكرة التحالف الإسلامي التي سبق أن نادى بها نجم الدين أربكان، رئيس الوزراء التركي السابق، بين الدول الإسلامية الكبيرة.

ويضيف الثنيان أنه "في ظل وجود تدخل مستمر في المنطقة العربية من جانب مجموعة من القوى لتحقيق مصالحها، ومن بينها الولايات المتحدة وبريطانيا وفرنسا وروسيا وإيران، كان من الطبيعي أن تسعى تركيا أيضا لحماية مصالحها، وذلك بأن تعقد تحالفات تقوم على المصالح المشتركة بينها وبين الدول العربية." ويرى أن تركيا دعمت الديمقراطية عندما حدثت ثورات الربيع العربي، والتي قامت نتيجة غياب الحرية والعدالة والتداول السلمي للسلطة وضغوط الفقر والتهميش على مواطني الدول التي شهدت ثورات. لم تكن تركيا هي التي أشعلت الثورات، كما يقول الثنيان، و"لكنها دعمت خيارات الشعوب، كما حدث في سورية مثلا، ثم تحملت أعباء ملايين اللاجئين بشكل لم تقم به أي دولة أخرى في المنطقة".

وفي الأزمة الخليجية، كما يقول الثنيان، تدخلت تركيا لمساندة دولة قطر الحليفة لها، كما تدخلت دول أخرى لمساندة حلفائها في الخليج، ومن ثم يرى أن دور تركيا إجمالا يصب في صالح شعوب المنطقة.

إلا أن الصورة تبدو مختلفة في أعين الدكتورة علا بطرس، أستاذة العلوم السياسية والمستشارة السابقة للخارجية للبنانية، إذ ترى أن تركيا تسعى لتعزيز نفوذها في المنطقة عبر تحالفاتها مع أحزاب الإسلام السياسي، مثل الإخوان المسلمين. وتشير إلى الرؤية التي قدمها أحمد داود أوغلو، رئيس وزراء تركيا السابق وأحد أبرز مفكري حزب العدالة والتنمية. إذ يرى أوغلو أن على تركيا أن تستخدم الموروث الثقافي والجغرافي لنشر نفوذها في الدول التي كانت ضمن السلطنة العثمانية، ومنها سورية ومصر والسودان وليبيا. والمشكلة، كما تقول علا بطرس، "أن تركيا تدعم جماعات مثل الإخوان على حساب الدولة، خاصة وأن هذه الجماعات تشعر بالتهميش والظلم من جانب دولها، وهذا يمس بأمن وسيادة الدول ويؤدي إلى تفككها كما حدث في سورية. إذ تحولت الثورة إلى حرب، ودخلت الجماعات الإسلامية في الصراع بحيث باتت تسيطر فعلا على أغلب الأراضي في مناطق المعارضة السورية، وليس الجيش السوري الحر".

وتشير علا بطرس إلى نجاح تجربة حزب العدالة والتنمية على مستوى الداخل في تركيا، إذ انتقلت تركيا من مرحلة الأزمة الاقتصادية والغياب كقوة مؤثرة، التي كانت قائمة خلال الحرب الباردة وفي إطار الجمهورية الكمالية، لتصبح قوة اقتصادية كبيرة تحتل الآن المرتبة السادسة ضمن أكبر الاقتصادات على المستوى الأوروبي، وتلعب دورا مؤثر في القضايا الإقليمية سواء اتفقنا أو اختلفنا معه. "لكن هذا النموذج الناجح الذي قدم للداخل التركي لم يعمم خارج تركيا نظر لأن تجربة حزب العدالة والتنمية مختلفة عن تجربة أحزاب تتشبه به، مثل الإخوان المسلمين في مصر، الذين استعجلوا التمكين"، ولم يحققوا تنمية اقتصادية مثل التي حققها حزب العدالة والتنمية" كما تقول. وتضيف "اعتقدوا أن الحكم هو مجرد صندوق اقتراع، الأمر الذي أدى لخسارتهم وخسارة أكبر للمشروع التركي في المنطقة. ولو نجح الإخوان في مصر لشكل هذا رافعة لأحزاب الإسلام السياسي الأخرى في المنطقة العربية."

Tuesday, October 8, 2019

"Исключительная мудрость". Трамп похвалил себя и пригрозил уничтожить экономику Турции

Президент США Дональд Трамп пригрозил полностью уничтожить экономику Турции, если Анкара сделает то, что американский лидер сочтет недопустимым. Что именно имел в виду американский прзеидент, он не уточнил.

Это заявление прозвучало на фоне подготовки Турцией военной операции на севере Сирии против сирийских курдов, которые были союзниками США в борьбе с "Исламским государством" (организация запрещена в России).

В январе Трамп уже заявлял о готовности разрушить экономику Турции, если Анкара решится атаковать позиции курдов в Сирии после вывода американских военных.

"Я твердо заявлял это раньше и повторю сейчас: если Турция сделает что-либо, что я, при своей великой и исключительной мудрости, сочту недопустимым, я полностью уничтожу и разрушу экономику Турции (как уже делал это раньше)!", - написал Трамп в "Твиттере".

Они [турки] должны вместе с Европой приглядывать за захваченными бойцами ИГ и их семьями. США сделали гораздо больше, чем кто-либо ожидал, включая захват 100% халифата ИГ. Настало время другим силам в регионе, некоторые из которых обладают огромным богатством, защитить свою территорию", - добавил Трамп.

В понедельник президент Турции Реджеп Тайип Эрдоган заявил, что решение о турецкой операции на севере Сирии к востоку от Евфрата может быть принято в ближайшие дни.

По его словам, целью операции будет очистка приграничной с Турцией сирийской территории от сил самообороны курдских ополченцев, создание там зоны безопасности и размещение в этой зоне находящихся в Турции сирийских беженцев.

Белый дом заявил, что США не станут препятствовать военной операции Турции в Сирии, но и участвовать в ней не будут. Также стало известно, что США начали выводить войска с северо-востока Сирии, где должна пройти операция.

Ранее Дональд Трамп написал в "Твиттере", что США "пора выйти из бесконечных войн" и вернуть американских военных домой. При этом он не исключил, что американцы могут "вернуться и нанести решающий удар".

Представитель Сирийских демократических сил (SDF), которые под руководством курдов занимают отбитую у ИГ территорию на севере Сирии, осудил решение Вашингтона.

"Соединенные Штаты Америки заверяли, что не позволят Турции проводить военные операции против этого региона", - заявил Кино Габриэль в интервью арабоязычному телеканалу "Аль-Хадат".

"Это заявление стало сюрпризом. Мы можем сказать, что это удар в спину SDF", - добавил он.

Курдские Отряды народной самообороны (YPG), которых поддерживают США, сыграли важную роль в разгроме "Исламского государства" на северо-востоке Сирии. Турция считает курдское ополчение ответвлением от запрещенной в стране Рабочей партии Курдистана (РПК).

Tuesday, October 1, 2019

Детские онкологи из центра Блохина записали видео и обещают уволиться

Детские онкологи из Национального медицинского исследовательского центра (НМИЦ) онкологии имени Блохина пригрозили увольнением из-за конфликта. Они требуют отстранить руководство института, назначенное летом.

Онкологи Максим Рыков, Георгий Менткевич, Наталия Субботина и Василий Бояршинов выпустили видеоообращение, в котором сообщили о готовности уволиться, если не будет заменено руководство онкоцентра. Видео размещено на Youtube-канале независимого профсоюза медицинских работников "Альянс врачей".

В распространенном ими обращении говорится, что уволиться в случае невыполнения требований якобы готовы 26 сотрудников.

"Мы требуем отстранить вновь назначенное руководство института, обоснованно и прозрачно распределять зарплату, провести аудит строительства новых корпусов института. Мы обращались ко всем представителям власти, нас никто не услышал. Теперь обращаемся ко всем гражданам России - коллегам, пациентам и их родителям с просьбой нас поддержать, потому что если не вы, то за нас никто больше не заступится", - заявили авторы обращения.

"Если требования не будут выполнены, 26 сотрудников Научно-исследовательского института детской онкологии и гематологии уволятся из института", - пообещали они.

Ранее в сентябре газета "Известия" сообщала, что что 20-25 детских онкологов собираются уволиться из центра имени Блохина из-за решения администрации онкоцентра об увольнении профессора Менткевича.

Tuesday, September 24, 2019

Дайджест: ученые вмешались в "московское дело", Грета Тунберг отчитала мировых лидеров

Российские ученые и правозащитники требуют пересмотра "московского дела"
Группа академиков и член-корреспондентов РАН, всего 53 человека, обратилась к российским властям с требованием пересмотреть дела фигурантов "московского дела".

Ученые считают, что в судах были допущены фальсификации доказательств, и судьи, вынесшие заведомо неправосудные приговоры, должны быть привлечены к ответственности, а арестованные - отпущены.

Члены совета при президенте России по развитию гражданского общества и правам человека (СПЧ) в свою очередь обратились к прокурору Москвы Денису Попову. Они также просят пересмотреть приговоры ряду лиц на основании того, что "Тверской районный суд по сути исключил состязательность в данном судебном процессе, отказавшись рассматривать видеоматериалы, полностью опровергающие позицию стороны обвинения".

Реакции властей на эти обращения пока нет.

Обо всех событиях, связанных с протестами в Москве и "московском деле" можно прочитать на live-странице Би-би-си (постоянно обновляется).

Балтийские страны гневно отреагировали на заявление МИД России, в котором говорится, что заключение пакта Молотова-Риббентропа спасло сотни тысяч жизней, в том числе прибалтов и поляков.

"Это явное и оскорбительное искажение истории, - заявила Русской службе Би-би-си представитель МИД Эстонии Бритта Тарвис. - Пакт Молотова-Риббентропа - это пример того, как два тоталитарных режима цинично перекраивали мир и попирали малые страны".

В заявлении российского внешнеполитического ведомства говорится, что советско-германское соглашение отсрочило нацистское присутствие для жителей ряда территорий по крайней мере на два года.

На это министр иностранных дел Латвии Эдгарс Ринкевичс написал в "Твиттере", что советский террор пришел на землю балтийских стран раньше, чем нацистский.

Пакт о ненападении между Германией и СССР был подписан Молотовым и Риббентропом 23 августа 1939 года.